अम्मा की कहानियाँ

 

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ध्रुव

 

एक राजा थे। उनका नाम था उत्थानपाद। उनकी दो रानियाँ थी। सुनीति और सुरुचि। दोनों रानियों को एक-एक लड़का हुआ। सुनीति के पुत्र का नाम था ध्रुव और सुरुचि के पुत्र का नाम था उत्तम। उत्थानपाद सुरुचि को ज्यादा पसन्द करते थे और सुरुचि की सब बात मानते थे। एक दिन महल के बाग में ध्रुव और उत्तम खेल रहे थे। उत्थानपाद भी वहाँ थे। उन्होंने उत्तम को अपनी गोदी में बैठा लिया। ध्रुव भी अपने पिता की गोदी में बैठना चाहते थे। सुरुचि ने ध्रुव से कहा अगर तुम मेरे पुत्र होते तब तुम्हें राजा की गोद में बैठने का अधिकार मिलता। ध्रुव बहुत दुखी हुए और रोते-रोते अपनी माँ के पास गये। सुरचि ने ध्रुव से कहा भगवान की कृपा से सब कुछ हो सकता है। तुम अपने पिता की गोद में भी बैठ सकते हो। पर तुम भगवान की गोद में बैठने का प्रयत्न करो। ध्रुव ने अपनी माँ से पूछा कि मुझे भगवान कैसे मिलेंगे। माँ ने कहा तुम भगवान की अराधना करो तुम्हें भगवान मिल जायेंगे। ध्रुव को माँ की यह बात समझ आगयी और एक रात जब माँ सो रहीं थी ध्रुव भगवान को ढूंढने के लिये घर से जंगल के लिये निकल पड़े।

ध्रुव को तो जंगल का रास्ता तक नहीं मालुम था पर मन में लगन थी कि मैं भगवान की अराधना कर उनकी गोदी में बैठूँगा। जब ध्रुव जा रहे थे उन्हें नारद मुनि ने देखा और सोचा यह अबोध बालक भगवान को ढूंढने के लिये घर से निकल पड़ा है। नारद जी ने ध्रुव से पूछा कि बालक तुम अकेले कहाँ जा रहे हो। ध्रुव ने उत्तर दिया कि मैं तो भगवान से मिलने जा रहा हूँ। ध्रुव ने नारद जी से पूछा कि आप मुँझे बतायें भगवान मुझे कैसे और कहाँ मिलेंगे। नारद जी ने ध्रुव से कहा कि तुम मधुवन जाओ और वहाँ तुम भगवान की तपस्या करना। मैं तुम्हें भगवान को प्रसन्न करने का मंत्र बताता हूँ।  नारद जी ने ध्रुव को मंत्र दिया। मंत्र था ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय ध्रुव मधुवन गए और वहाँ एक पेड़ के नीचे बैठ गए और ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय का जाप करने लगे। थोड़े समय तक तो ध्रुव ने केवल फल खाये और फिर फल खाना भी छोड़ दिया। फिर कुछ समय तक पत्ते खाये और फिर पत्ते खाना भी छोड़ दिया।

देवताओं ने ध्रुव की अटूट तपस्या देखी। उन्हें भय हुआ कि ध्रुव अपनी तपस्या के प्रताप से देवलोक पहुँच जायेंगे और उनका स्थान ग्रहण कर लेंगे। देवताओं ने ध्रुव की तपस्या भंग करने के लिये जंगली जानवर उनको डराने के लिये भेजे। और तरह तरह के प्रयास करे। ध्रुव जाप करते रहे और अपनी आँखें नहीं खोलीं।

भगवान ने देवताओं से कहा कि तुम एक छोटे बच्चे को क्यों तंग कर रहे हो। देवताओं ने भगवान से कहा कि हम ध्रुव की तपस्या से डर गए हैं। वह शीघ्र आपके पास पहुँच जायेगा। भगवान ध्रुव के पास आये। ध्रुव ने अपनी आँख नहीं खोलीं। वह तो भगवान के ध्यान में मग्न थे। भगवान ने ध्रुव के मन में प्रवेश करा। ध्रुव को चेतना आयी और उसने अपने सामने भगवान विष्णु को देखा। ध्रुव तो बच्चे थे उन्हें नहीं मालुम था कि  भगवान के दर्शन होने पर उनकी कैसे प्रार्थना करनी चाहिये। ध्रुव भगवान के सामने हाथ जोड़ कर खड़े हो गए और  ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय का जाप करने लगे। भगवान ध्रुव से बहुत प्रसन्न हुये और पूछा तुम्हे क्या चाहिए। ध्रुव ने कहा भगवान मुझे आपकी गोदी में स्थान चाहिये। भगवान ने  ध्रुव से कहा जब से तुम घर छोड़ कर आये हो तुम्हारे पिता बहुत दुखी हैं। तुम्हारे पिता तुम्हें अपनी गोद में बैठायेंगे। ध्रुव ने भगवान से कहा मुझे तो केवल आपकी गोद में ही बैठना है। भगवान ने ध्रुव से कहा अभी तो तुम अपने पिता के पास जाओ। जब तुम बड़े हो जाओगे मैं तुम्हें और तुम्हारी माँ को अपने पास बुला लूँगा और अपनी गोदी में स्थान दूँगा।

ध्रुव घर वापिस गए। उत्थानपाद  अपने मंत्रियों के साथ ध्रुव जी का स्वागत करने गए। ध्रुव को उत्थानपाद ने अपना राज्य दे दिया। ध्रुव जी ने बहुत  सालों तक राज करा। ध्रुव जब बहुत उमर के हो गये भगवान ने उन्हें अपने पास बुला लिया और ध्रुव को एक ऐसा तारा बनाया जिसके चारों तरफ विश्व के सभी तारे घूमते हैं। उस तारे का नाम ध्रुव तारा है।

 

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