अम्मा की कहानियाँ

 

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प्रहलाद

 

हिरण्यकश्यप राक्षसों का राजा था। बहुत घमन्डी था। वह चाहता था कि सब उस की ही पूजा करें। उसके सिवाय किसी और की पूजा करें। वह भगवान को नहीं मानता था और विष्णु भगवान का अनादर करता था। हिरण्यकश्यप एक बच्चे के बाप बने उस बच्चे का नाम प्रहलाद था। प्रहलाद बचपन से ही भगवान का भक्त था। हिरण्यकश्यप को प्रहलाद का भगवान की पूजा करना बुरी लगती थी। उसने राक्षसों के गुरू को बुला कर कहा कि प्रहलाद को ऐसा पढ़ाओ कि वह तो भगवान को माने और ही भगवान की पूजा करे।

एक दिन एक कुम्हार ने मट्टी के बरतन सेकने के लिए भट्टी में आग जला दी। उसको पता नहीं था कि एक बड़े बरतन जिसे सेकने के लिए भट्टी में रखा था उस में बिल्ली के छोटे-छोटे बच्चे थे। अब कुम्हार को बहुत दुःख हुआ कि उसके कारण बच्चे जल कर मर जायेंगे। प्रहलाद को जब यह पता चला उसने भगवान से प्रार्थना की वे बिल्ली के बच्चों को बचा लें। बच्चे हँसी-खुशी बाहर गये। प्रहलाद ने अपने मित्रों से कहा कि भगवान शक्तिशाली हैं और सब को उनकी पूजा करनी चाहिए।

हिरण्यकश्यप को जब यह पता चला तब उसे बहुत गुस्सा आया। उसने  प्रहलाद के गुरू से कहा कि वह प्रहलाद को उसके पास ले आयें। प्रहलाद से पूछा कि तुमने क्या सीखा। प्रहलाद ने कहा कि भगवान सबसे पूज्य हैं और सर्व शक्तिशाली हैं। हिरण्यकश्यप को यह सुन कर बहुत गुस्सा आया। उसने आदेश दिया कि प्रहलाद को हाथी के पैर से कुचलवा दो। हाथी ने प्रहलाद के ऊपर पैर नहीं रखा और प्रहलाद को अपनी सूँड से अपने ऊपर बैठा लिया। हिरण्यकश्यप ने कहा कि प्रहलाद को पहाड़ की चोटी से नीचे फेंक दो। राक्षसों ने प्रहलाद को पहाड़ की चोटी से नीचे फेंका पर भगवान ने उसे अपनी गोदी में ले लिया। राक्षसों ने हिरण्यकश्यप से कहा कि हमने  प्रहलाद को मारने की बहुत कोशिश की पर उसका का बाल तक बाँका हुआ। उसे इसके भगवान बचा लेते हैं।

प्रहलाद की बुआ, हिरण्यकश्यप की बहन, होलिका के पास एक चादर थी जो आग में नहीं जल सकती थी। उसने हिरण्यकश्यप से कहा देखो भैया मैं चादर ओढ कर प्रहलाद को गोद में ले कर आग में बैठ जाऊँगी। मैं बच जाऊँगी और प्रहलाद जल कर मर जायेगा। लेकिन हवा का ऐसा झोंका आया कि चादर होलिका के ऊपर से उतर कर प्रहलाद के ऊपर लिपट गयी। होलिका तो जल गयी और प्रहलाद आग से बाहर निकल आया।

हिरण्यकश्यप को बहुत गुस्सा आया। उसने  प्रहलाद को अपने पास बुलाया और पूछा तेरा विष्णु कहाँ है। प्रहलाद ने कहा कि विष्णु सब जगह हैं। हिरण्यकश्यप ने गुस्से में कहा बता क्या विष्णु इस खम्बे में भी हैं। प्रहलाद ने कहा भगवान इस खम्बे में भी हैं। हिरण्यकश्यप ने अपनी तलवार निकाली और जोर से खम्बे में मारी। खम्बा फटा। खम्बे में से नरसिंह भगवान प्रकट हुए। नरसिंह भगवान का आधा शरीर शेर का था और आधा शरीर मनुष्य का था। उन्होंने हिरण्यकश्यप को अपने पंजों से पकड़ लिया। और हिरण्यकश्यप से कहा कि देखो तुम्हें वरदान मिला था कि तो तुम मनुष्य से मरोगे और तुम पशु से मरोगे। मैं  आधा मनुष्य हूँ और आधा पशु हूँ। तुम्हें वरदान मिला था कि तो तुम दिन में मरोगे और रात में मरोगे। यह सन्ध्या का समय है। यह तो दिन है और तो यह रात है। तुम धरती पर मरोगे तुम आकाश में। मैं तुम्हें अपनी गोदी में मारूँगा। तुम घर में मरोगे और तुम घर के बाहर मरोगे। भगवान ने हिरण्यकश्यप को अपनी गोदी में रख कर महल की दहलीज पर अपने पंजों से मार दिया।

सब राक्षस भगवान का यह रुद्र रूप देख कर काँपने लगे। उन्होंने हाथ जोड़ कर प्रहलाद जी से कहा आप भगवान से प्रार्थना करें तब ही भगवान शान्त होंगे। प्रहलाद जी ने  हाथ जोड़ कर भगवान से प्रार्थना की कि मेरे पिता ने आपका अनादर कर बहुत बड़ी भूल की। आप उन्हें क्षमा कर अपनी शरण में ले लीजिए। भगवान प्रसन्न हुए और उन्होंने प्रहलाद को अपनी गोदी में ले लिया और बहुत प्यार करा। प्रहलाद को राक्षसों का राजा बना दिया। प्रहलाद की प्रजा भगवान की भक्त बन गयी और भगवान विष्णु कि पूजा करने लगी।

 

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